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डेब्ट फंड्स के बारे में अधिक जाने

डेब्ट फंड्स के बारे में अधिक जाने

Zerodha Paathshala (Hindi‪)‬ Zerodha

पिछले ३ सालों से डेब्ट फंड्स में कुछ निवेशकों को बहुत तकलीफ सहनी पड़ी है। इससे एक बात साफ़ है, डेब्ट एलोकेशन पर ध्यान देना बहुत ज़रूरी है। इस एपिसोड में हम IDFC म्यूच्यूअल फण्ड के सिबेष कुमार जी से जानेगें की अपना डेब्ट पोस्टफोलिओ हम कैसे बना सकते हैं।

इस चर्चा में सिबेष जी हमें बताते हैं की -


शेयर बाजार में उनका करियर कैसे चालू हुआ

अपने करियर की शुरुवात से आज तक उन्होंने फाइनेंसियल मार्केट्स में क्या बदलाव देखे हैं

अपने पोर्टफोलियो में डेब्ट क्यों रखना चाहिए

डेब्ट में निवेश करने का कोर और सैटेलाइट एप्रोच

निवेश करने के थंब रूल्स कितने सही होते हैं

आज कल के लो इंटरेस्ट दुनिया में रेटियरी और इंटरेस्ट पे निर्भर निवेशक क्या करें?

निझी इन्वेस्मेंट फिलोसोफी और कुछ अपने जीवन में मिली सीख

  • 29 JAN 2021

म्यूच्यूअल फंड्स में पहला निवेश

पिछले साल से शेयर बाजार में पहले बड़ी गिरावट और फिर लम्बी तेज़ी ने हम सबको चौका दिया है। कई नए निवेशक जाना चाहते हैं की ऐसे हालत में उन्हें अभी क्या करना चाहिए। नए निवेशकों के लिए म्यूच्यूअल फण्ड में इन्वेस्टमेंट मार्किट में आने का एक पॉपुलर जरिया रहा है। इस एपिसोड में हम महिंद्रा मान्यूलाइफ़ म्यूच्यूअल फण्ड के MD और CEO आशुतोष बिश्नोई जी से जानेगें की म्यूच्यूअल फंड्स क्या होते हैं और निवेश चालू करने से पहले हमें क्या ध्यान में रखना चाहिए।

इस चर्चा में आसुतोष जी हमें बताते हैं की -

1. शेयर बाजार में उनका करियर कैसे चालू हुआ

2. अपने करियर की शुरुवात से आज तक उन्होंने फाइनेंसियल मार्केट्स में क्या बदलाव देखे हैं

3. छोटे शेरोन और गाओं में लोग निवेश कैसे करते हैं

4. म्यूच्यूअल फंड्स में निवेश क्यों करना चाहिए

5. म्यूच्यूअल फंड्स किसके के लिए सही हैं

6. डायरेक्टली शेयर्स खरीदने और म्यूच्यूअल फण्ड निवेश में बेहतर क्या है

7. म्यूच्यूअल फंड्स किस तरह के होते हैं

8. निझी इन्वेस्मेंट फिलोसोफी और कुछ अपने जीवन में मिली सीख

अगर आप इस चर्चा पर आधारित सवाल पूछना चाहते हैं तोह नीच दिए गए लिंक पर उन्हें पूछ सकते हैं - https://tradingqna.com/c/Mutual-Funds-ETF/14

  • 1 hr 28 min
  • 13 APR 2020

शेयर मार्केट के सफल निवेशकों का स्वाभाव - रामदेव अग्रवाल से जानिये।

हम समझते हैं कि शेयर मार्केट में तेज़ गिरावट की वजह से आप चिंतित हो सकते हैं। हमारी कोशिश रही है की हम आपके लिए उन् भारतीय शेयर मार्केट एक्सपर्ट्स को इस पॉडकास्ट में शामिल करें जो अपने अनुभव से आपकी सहायता कर सकते हैं।

आज के एपिसोड में हमारे साथ मोतीलाल ओसवाल फिनांशियल सर्विसेस के मैनेजिंग डायरेक्टर, रामदेव अग्रवाल जी, उपस्थित हैं। रामदेव जी ने अपने शेयर मार्केट करियर में वारेन बुफेट जैसे दिगज निवेशकों से सीख लेते हुए अविश्वसनीय सफलता प्राप्त करी है। आज हम उनसे उनकी अपनायी हुई QGLP (क्वालिटी, ग्रोथ, लांजेविटी और फेयर प्राइस) फिलोसोफी के बारे में चर्चा करेंगे। रामदेव जी अपनी "बाई राइट, सिट टाइट" फिलोसोफी के लिए भी मशहूर हैं। मार्केट्स के ऐसे हालातों में क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए, हमने रामदेव जी से समझने की कोशिश की है।

  • 8 APR 2020

अस्थिर शेयर मार्केट में निवेश के अगले कदम - नीलेश सुराणा से जाने।

पिछले दिनों में कुछ सुधार देखने से पहले, फरवरी से निफ्टी 12300 के स्तर से 7500 तक के स्तर पर गिर गया था। यह भारतीय बाजारों के इतिहास में 2008 में आई सबसे तेज गिरावट में से एक है। इस अस्थिरता से चिंतित होना शायद उचित है।

आज के पॉडकास्ट एपिसोड में हम मिरै इंडिया म्यूचुअल फंड के सी।आई।ओ नीलेश सुराणा जी से बात कर रहे हैं। शेयर बाजार के हालातों को ध्यान में रखते हुए हम जानेंगे की हमें क्या करना चाहिए और क्या नहीं। 25 साल के अनुभव के साथ नीलेश जी भारत के शीर्ष फंड मैनेजरों में से एक है और उनके फंड ने अपने निवेशकों के लिए अकूत संपत्ति बनाई है। इस चर्चा में हम पिछले बाजार दुर्घटनाओं, निवेशक व्यवहार, एसेट एलोकेशन, अस्थिर समय के दौरान निवेश कैसे करें और आम गलतियों से बचने के बारे में बात करेंगे।

कृपया नीलेश सुराणा जी के साथ इस चर्चा का आनंद लें।

  • 3 APR 2020

गिरते हुए शेयर मार्केट में निवेश का नक्शा - नीलेश शाह के साथ।

फरवरी से निफ्टी 50 ,निफ्टी मिडकैप 100 और निफ्टी स्मॉलकैप 100 30 % से 40 % गिर चुके हें। दुनिया भर के इक्विटी बाजारों में गिरावट बहुत तेज और क्रूर रही है। हम जानते हैं कि इस गिरावट से आप चिंतित हो सकते हैं लेकिन निवेश करते समय डेब्ट फंड्स के बारे में अधिक जाने हमेशा एक मानसिक नक्शा होना बहुत जरूरी है।

इस चर्चा में कोटक म्युचुअल फंड के मैनेजिंग डायरेक्टर (एमडी) नीलेश शाह जी हमारे साथ हें। नीलेश जी के पास शेयर बाजार में 25 से अधिक वर्षों का अनुभव है। उनसे हम जानते हें कि बाजारों में क्या हो रहा है, निवेशकों को क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए। उन्होंने हमें पिछले मार्केट क्रॅशेस के बारे में अपना अनुभव भी बताया है।

डेब्ट फंड्स के बारे में अधिक जाने

इक्विटी म्यूचुअल फंड्स शेयर डेब्ट फंड्स के बारे में अधिक जाने खरीदते हैं जबकि डेट फंड्स अपने पोर्टफोलियो के लिए निश्चित आय वाली प्रतिभूतियाँ, जैसे बॉन्ड्स, खरीदते हैं। बॉन्ड्स जैसी प्रतिभूतियाँ कॉर्पोरेट्स द्वारा जारी की जाती हैं जैसे बिजली कंपनियाँ, बैंक, हाउसिंग फाइनैंस कंपनियाँ और सरकार। नई परियोजनाओं के लिए कर्ज़ लेने के बजाय वे जनता (निवेशकों) से पैसे जुटाने के लिए निर्धारित ब्याज दर वाले बॉन्ड्स जारी करते हैं। बॉन्ड्स उन निवेशकों को समय-समय पर निर्धारित ब्याज का भुगतान करने का वादा करते हैं जो उन्हें खरीदते हैं।

जब निवेशक कुछ वर्षों की मच्योरिटी वाले बॉन्ड्स खरीदते हैं, तो वे उतने वर्षों के लिए जारीकर्ता (जैसे ABC पावर लिमिटेड) को अपनी रकम उधार देते हैं। ABC अपने निवेशकों द्वारा उसके बॉन्ड्स में निवेश की गई रकम (=ABC को उधार दी गई रकम) के बदले उन्हें इस समय के दौरान मियादी ब्याज का भुगतान करने का वादा करती है। ABC होम लोन लेने वाले ग्राहक की तरह कर्जदार होता है। निवेशक (आपकी रकम निवेश करने वाला म्यूचुअल फंड) ABC का ऋणदाता (उधार देने वाला) है, ठीक वैसे ही जैसे बैंक होम लोन लेने वाले ग्राहक का ऋणदाता होता है।

डेट फंड्स आपकी रकम को विभिन्न बॉन्ड्स और अन्य निश्चित आय वाली प्रतिभूतियों में निवेश करते हैं।

निवेश में स्थिरता व वृद्धि का विकल्प डेब्ट फंड

इक्विटी म्यूचुअल फंड्स पब्लिक लिस्टेड कंपनियों में निवेश करते हैं, वहीं डेब्ट फंड्स सरकारी और कंपनियों की फिक्स्ड-इनकम सिक्योरिटीज में निवेश करते हैं. इनमें कॉर्पोरेट बॉन्ड, सरकारी सिक्योरिटीज, ट्रेजरी बिल, मनी मार्केट इंस्ट्रूमेंट्स और अन्य कई प्रकार की डेब्ट सिक्योरिटीज शामिल हैं.

किसी कंपनी की इक्विटी में निवेश करना, उस कंपनी की हिस्सेदारी को खरीदना होता है, वहीं जब आप डेब्ट फंड में निवेश करते हैं तो, आप फंड जारी करने वाली संस्था को लोन देते हैं. सरकार और प्राइवेट कंपनियां लोन पाने के लिए बिल और बॉन्ड जारी करती हैं.

डेब्ट फंड में निवेश की गयी राशि की परिपक्वता अवधि और मिलनेवाला ब्याज पूर्व निर्धारित होता है. इसलिए इन्हें 'फिक्स्ड इनकम' सिक्योरिटी कहा जाता है, क्योंकि इसमें आपको पता होता है कि आपको क्या मिलने वाला है. इक्विटी फंड की तरह ही डेब्ट फंड में भी अलग-अलग सिक्योरिटीज में निवेश करके अच्छा लाभ प्राप्त किया जा सकता है. परंपरागत या छोटे निवेशकों के लिए यह एक सुरक्षित निवेश विकल्प के रूप में जाना जाता है.

डेब्ट फंड्स अलग-अलग क्रेडिट रेटिंग्स की विभिन्न सिक्योरिटीज में निवेश करते हैं. सिक्योरिटीज जारी करने वाली संस्था का अधिक क्रेडिट रेटिंग का होना यह बताता है कि मैच्योरिटी पर ब्याज और मूल राशि का भुगतान किये जाने की बेहतर संभावना है.

इसलिए जो डेब्ट फंड्स अधिक क्रेडिट रेटिंग वाले सिक्योरिटीज में निवेश करते हैं, वे दूसरे सिक्योरिटीज की तुलना में कम अस्थिर होते हैं. इसके अलावा दूसरा पहलू परिपक्वता की अवधि है, जो जितना कम होगा, नुकसान की संभावना भी उतनी ही कम होगी.

डेब्ट म्यूचुअल फंड भी अलग-अलग तरह के होते हैं. विभिन्न डेब्ट फंड के बीच जो चीज सबसे बड़ा अंतर पैदा करती है वह है परिपक्वता की अवधि.

नाम से ही स्पष्ट है कि यह एक 'डायनामिक' फंड, यानी कि यह फंड बदलते ब्याज दर के अनुसार अपना पोर्टफोलियो बदलते रहते हैं. इसकी परिपक्वता की अवधि बदलती रहती है क्योंकि यह ब्याज दर के अनुसार निवेश को कम या ज्यादा समय के लिए लगाते रहते हैं.

इनकम फंड भी ब्याज दर के अनुसार विभिन्न डेब्ट सिक्योरिटीज में निवेश करते हैं. सामान्यतया इनकी मैच्योरिटी अवधि लंबे समय की होती है. इस कारण से यह डायनामिक फंड्स की तुलना में ज्यादा स्थिर होते हैं. इनकी औसत मैच्योरिटी अवधि लगभग 5-6 साल की होती है.

यह कम समयावधि के डेब्ट फंड्स हैं जिनकी परिपक्वता अवधि लगभग तीन साल का होता है. शॉर्ट- टर्म डेब्ट फंड्स सामान्य निवेशक के लिए बेहतर होते हैं क्योंकि बदलते ब्याज दरों से यह ज्यादा प्रभावित नहीं होते हैं. इनमें तीन से छह महीने तक के लिए निवेश की जा सकती है.

यह फंड बचत बैंक खाते का अच्छा विकल्प होता है. इनमें मैच्योरिटी अवधि 91 दिनों से ज्यादा नहीं होती है. इसलिए इनमें जोखिम बहुत कम होता है. कई म्यूचुअल फंड कंपनियां स्पेशल डेब्ट कार्ड्स के माध्यम से लिक्विड फंड निवेश को तुरंत निकालने की सुविधा भी प्रदान करती हैं. इसमें एक दिन से लेकर तीन महीने तक के लिए निवेश किया जा सकता है.

यह केवल अधिक रेटिंग वाली सरकारी सिक्योरिटीज में ही निवेश करते हैं. इनमें क्रेडिट रिस्क न्यूनतम होता है. ऐसा इसलिए क्योंकि कई बार कॉरपोरेट डेब्ट इंस्ट्रूमेंट्स के रूप में लिये गये लोन में डिफॉल्ट हो जाती है. इसलिए निश्चित आय वाले निवेशक जो इस तरह का रिस्क नहीं लेना चाहते, उनके लिए यह एक अच्छा विकल्प है.

एक सामान्य और परंपरावादी निवेशक के लिए यह एक बेहतर विकल्प है. डेब्ट फंड्स फिक्स्ड डिपॉजिट की रेंज में ही ब्याज देते हैं, लेकिन उसकी तुलना में टैक्स में अधिक छूट प्रदान करते हैं. फिक्स्ड डिपॉजिट से जो आय होती है, वह आपकी आय में जुड़ जाती है और आपको उस स्लैब के अनुसार टैक्स देना पड़ता है.

डेब्ट फंड्स के शॉर्ट-टर्म लाभ भी टैक्स योग्य आय में जुड़ते हैं, लेकिन जब समयावधि तीन वर्ष से ज्यादा होती है, तो टैक्स में ज्यादा फायदा मिलता है. लंबे समय के लाभ पर इंडेक्सेशन के बाद 20% टैक्स लगाया जाता है. डेब्ट फंड्स फिक्स्ड डिपॉजिट की तुलना में ज्यादा तरल हैं. फिक्स्ड डिपॉज़िट में जहां पूंजी लॉक हो जाती है, वहीं डेब्ट फंड्स में उसे कभी भी निकाली जा सकती है. कुल राशि में से कुछ राशि निकालना भी डेब्ट फंड्स में संभव है.

फिक्स्ड मैच्योरिटी प्लान (एफएमपी) क्लोज इंड डेब्ट फंड होते हैं. यह एक फिक्स्ड डिपॉजिट की तरह हैं, जो टैक्स में शानदार छूट प्रदान करते हैं. ये भी कॉर्पोरेट बॉन्ड और सरकारी प्रतिभूतियों में निवेश करते हैं, लेकिन इनमें पूंजी को रोकने का एक समय होता है. हर एफएमपी में एक निश्चित अवधि तक आपकी पूंजी लॉक रहती है. यह समय कुछ महीनों या सालों का हो सकता है. शुरुआती ऑफर पीरियड में एफएमपी में निवेश किया जा सकता है.

फिक्स्ड इनकम सिक्योरिटीज की कीमत ब्याज दर से विपरीत होती है. जब ब्याज दर बढ़ती है, तो बॉन्ड की कीमत कम हो जाती है और कम होने पर कीमत ज़्यादा. यही कारण है कि जब ब्याज दर गिरती है, तो डेब्ट फंड्स अच्छा मुनाफा कमाते हैं क्योंकि इनकी कीमतें बढ़ जाती हैं. ब्याज दर जिसके बारे में हम अक्सर खबरों में सुनते हैं, यह रेपो रेट और रिवर्स रेपो रेट होती है, जो कि रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया द्वारा तय किया जाता है, उससे प्रभावित होती है.

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क्या होता है हाइब्रिड फंड, जानिए इसमें निवेश के फायदे?

म्यूचुअल फंड (Mutual Fund) में निवेश करना सबसे सही और सुरक्षित विकल्प माना जाता है. कई तरह के अच्छे म्यूचुअल फंड बाजार में मौजूद हैं, जिनके जरिए हम अपना पैसा निवेश कर सकते हैं. उनमें से एक है हाइब्रिड फंड्स (Hybrid Funds). जब से शेयर बाजार में तेजी का रुख लौटा है तो ऐसे में हाइब्रिड फंड्स में लोगों का निवेश भी दोबारा से लौट आया है.

Hybrid Mutual Funds

सरबजीत कौर

  • नई दिल्ली,
  • 10 नवंबर 2021,
  • (अपडेटेड 10 नवंबर 2021, 10:36 PM IST)
  • हाइब्रिड फंड के जरिये इक्विटी और डेट दोनों में निवेश
  • कई बार फंड का पैसा सोना में भी लगाया जाता है

म्यूचुअल फंड (Mutual Fund) में निवेश करना सबसे सही और सुरक्षित विकल्प माना जाता है. कई तरह के अच्छे म्यूचुअल फंड बाजार में मौजूद हैं, जिनके जरिए हम अपना पैसा निवेश कर सकते हैं. उनमें से एक है हाइब्रिड फंड्स (Hybrid Funds). जब से शेयर बाजार में तेजी का रुख लौटा है तो ऐसे में हाइब्रिड फंड्स में लोगों का निवेश भी दोबारा से लौट आया है. निवेशकों के बीच हमेशा से पसंदीदा रहने वाला फंड माना जाता है, तो हम आपको बताएंगे कि क्या होता है हाइब्रिड फंड्स और कैसे इसे बाकी म्यूचुअल फंड्स से अलग माना जाता है? साथ ही किसे हाइब्रिड फंड में निवेश करना चाहिए?

हाइब्रिड फंड क्या है?
हाइब्रिड फंड वो म्यूचुअल फंड स्कीम है जो इक्विटी और डेट दोनों में निवेश करती है. या फिर कहें तो एक ही फंड है जो कई तरह के एसेट क्लास में निवेश करता है. अगर बाजार में रिस्क कम लेना चाहते हैं तो आपके लिए हाइब्रिड फंड में निवेश करना एक बेहतर विकल्प है. क्योंकि, इनमें रिस्क से कम के साथ-साथ रिटर्न भी ज्यादा मिलता है. फिलहाल कोरोना की वजह से बाजार में काफी कुछ अभी भी संभला नहीं. तीसरी लहर का डर अभी भी कहीं न कहीं लोगों में मौजूद है. तो ऐसे में निवेशकों के लिए कम रिस्क के फंड यानी की हाइब्रिड फंड में निवेश करना सही माना जा रहा है.

राइट रिसर्च की को-फाउंडर-सोनम श्रीवास्तव के मुताबिक- 'जैसा कि शब्द से पता चलता है, एक हाइब्रिड फंड जोखिम सहनशीलता के विभिन्न स्तरों की आवश्यकता को पूरा करने के लिए कई परिसंपत्ति वर्गों में निवेश करता है. आमतौर पर, निवेश इक्विटी और निश्चित आय के साधनों के मिश्रण में किया जाता है. जहां इंडेक्स फंड मुख्य रूप से इक्विटी और इक्विटी से संबंधित इंस्ट्रूमेंट्स में निवेश करते हैं और डेट फंड फिक्स्ड इनकम सिक्योरिटीज और अन्य डेट इंस्ट्रूमेंट्स में निवेश करते हैं, वहीं हाइब्रिड फंड इक्विटी और डेट से जुड़े इंस्ट्रूमेंट्स दोनों में निवेश करते हैं. इसलिए इन्हें बैलेंस्ड फंड भी कहा जाता है.'

क्यों बेहतर है हाइब्रिड फंड?

हाइब्रिड फंड की खासियत यह है कि फंड का पैसा इक्विटी के साथ डेट एसेट में भी लगाया जाता है. कई बार फंड का पैसा सोना में भी लगाया जाता है. अलग-अलग एसेट क्लास में निवेश के कारण इसमें निवेश से डाइवर्सिफिकेशन का फायदा मिलता है. मान लीजिए अगर इक्विटी में लगा पैसा कम होता है या बाजार के माहौल के मुताबिक बिगड़ता है तो डेट और सोने में लगे पैसे के जरिए फंड बैलेंस हो जाता है. ठीक अगर सोने में कमजोरी से फंड में रिटर्न कम होता है तो डेट और इक्विटी के जरिए बैलेंस हो जाता है. यानी की अलग-अलग एसेट क्लास यानी की डाइवर्सिफिकेशन से में निवेश करने से फंड को फायदा होता है.

कितने प्रकार के होते हैं हाइब्रिड फंड?
हाइब्रिड फंड 6 मुख्य प्रकार के होते हैं. जिनके जरिए डेट, इक्विटी या फिर सोने में पैसा निवेश किया जाता है.

एग्रेसिव हाइब्रिड फंड:
इक्विटी में 60 से 80 फीसदी निवेश
20 से 30 फीसदी का निवेश डेट में
पांच साल की अवधि के लिए निवेश सही

कंजर्वेटिव हाइब्रिड फंड:
10 से 25 फीसदी निवेश इक्विटी में
बाकी बची रकम का डेट एसेट में इस्तेमाल
स्थिर या नियमित आय के लिए फायदेमंद

डायनेमिक एसेट एलोकेशन फंड:
फंड का इस्तेमाल डायनेमिक तरीके से एसेट क्लास में किया जाता है
100 फीसदी निवेश इक्विटी या डेट में किया जाता है

मल्टी एसेट एलोकेशन फंड:
इक्विटी, गोल्ड और डेट तीनों एसेट क्लास में निवेश होता है
65 फीसदी निवेश इक्विटी में
20 से 30 फीसदी निवेश डेट एसेट में
10 से 15 फीसदी निवेश गोल्ड में होता है

आर्बिट्राज फंड्स:
कुल एसेट का कम से कम 65 फीसदी इक्विटी से जुड़े साधनों में निवेश

इक्विटी सेविंग्स फंड:
इक्विटी, डेट और आर्बिट्राज में होता है निवेश
कुल एसेट का 65 फीसदी निवेश शेयरों में जरूरी
10 फीसदी निवेश डेट में करना अनिवार्य

रिटर्न कैसा मिलता है?
जानकारों की मानें तो हाइब्रिड फंड हमेशा अच्छे रिटर्न्स देने के लिए माने जाते रहे हैं. हाइब्रिड फंड्स जब डेट सिक्योरिटीज के की सुरक्षा के कारण शेयर बाजार अस्थिर होता है तो अच्छा परफॉर्म करते हैं. बाजार के उतार-चढ़ाव का सामना करने की क्षमता होती है. फंड को चुनने से पहले अपने जोखिम, निवेश करने के लक्ष्य को जरूर समझें. 5 से 7 साल तक के निवेश से 20 से 30 फीसदी तक का रिटर्न संभव.

माई वेल्थ डॉट कॉम के को-फाउंडर-हर्षद चेतनवाला के मुताबिक-'वह निवेशक जो इक्विटी से कम जोखिम और डेब्ट फंड्स से थोड़ा अधिक रिटर्न्स चाहते हैं वह हाइब्रिड फंड्स में निवेश कर सकते है. इस फंड में फंड मैनेजर बाजार और अर्थव्यवस्था की स्थिति के अनुसार इक्विटी इक्विटी और डेब्ट का एक संतुलित पोर्टफोलियो बनाते है.'

जाने टैक्स से जुड़ी बातें:
अगर आप निवेश किसी भी फंड में निवेश करना चाहते हैं लेकिन कर नहीं सही फंड चुन नहीं पा रहे हैं तो आपके लिए हाइब्रिड फंड सबसे सही विकल्प है. लेकिन इसमें टैक्स भी लगता है. LTCG यानी की लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन टैक्स पर बिना इंडेक्सेशन के 10 फीसदी टैक्स और शॉर्ट टर्म कैपिटल गेन्स (STCG) पर 15 फीसदी टैक्स लगता है. साथ ही, हाइब्रिड फंड के डेट कंपोनेंट पर किसी भी अन्य डेट म्यूचुअल फंड की तरह टैक्स लगाया जाता है. इसके अलावा, डेट कंपोनेंट से एलटीसीजी टैक्स 20% पोस्ट इंडेक्सेशन और 10% बिना इंडेक्सेशन पर टैक्स लगता है.

किसे करना चाहिए निवेश:
अगर कोई भी व्यक्ति मोटा मुनाफा चाहता है तो उसे हमेशा 5 से 7 साल तक के समय सीमा के लिए हाइब्रिड फंड में निवेश करना चाहिए. म्यूचुअल फंड में नए निवेशकों के लिए ये काफी अच्छा फंड माना जाता है. डाइवर्सिफिकेशन और एसेट एलोकेशन वाले फंड में निवेश की वजह से भी ये फंड काफी सही माना जाता है. कम जोखिम उठाने वालों से लेकर एग्रेसिव निवेशक भी हाइब्रिड फंड में पैसा लगा सकते हैं.

सही हाइब्रिड फंड कैसे चुनें?
किसी भी हाइब्रिड फंड में निवेश करने से पहले कुछ बातों का ध्यान रखना जरूरी है जैसे आपकी जोखिम लेने की क्षमता, कब तक निवेश किया जा सकता है, खर्चे की दर और फंड का प्रदर्शन सभी को ध्यान में रखकर निवेश करें.

इंडिया के कुछ टॉप हाइब्रिड फंड हैं:
(SOURCE: Sonam Gupta, Co-Founder, Wright Research)

1. Quant Absolute Fund
2. ICICI Prudential Thematic Advantage Fund (FOF)
3. BNP Paribas Substantial Equity Hybrid Fund
4. Canara Robeco Equity Hybrid Fund

ऊपर दिए गए सभी फंड्स का सालाना रिटर्न 20 से 30 फीसदी के बीच रहा है

(डिस्क्लेमर: किसी भी तरह के फंड में निवेश से पहले अपने फंड मैनेजर से सलाह जरूर लें.)

Investment plan: रिस्क-फ्री न होने पर भी ये इन्वेस्टमेंट प्रोडक्ट्स आपके लिए हो सकते हैं बेहतर

टाइम्स नाउ डिजिटल

Investment Tips: फिक्स्ड डिपोजिट, डेब्ट म्यूच्युअल फंड्स, रियल एस्टेट और अन्य इन्वेस्टमेंट प्रोडक्ट्स में भी रिस्क होता है, लेकिन अलग-अलग प्रोडक्ट में रिस्क सीमा और रिटर्न क्षमता अलग-अलग होती है।

Debt funds investment product may be better for you even if not risk-free

क्या कोई इन्वेस्टमेंट टूल पूरी तरह रिस्क-फ्री हो सकता है, या क्या ऐसा मानना गलत है? प्रत्येक इन्वेस्टमेंट प्रोडक्ट में एक या कई तरह के रिस्क होते हैं। इससे इन्वेस्टमेंट प्रोडक्ट के रिटर्न का पता लगाने में काफी मदद मिलती है। उदाहरण के लिए, अधिकांश इन्वेस्टर्स को पता है कि इक्विटी इन्वेस्टमेंट्स में अधिक मार्केट-लिंक्ड रिस्क होने पर भी वे लम्बे-समय में मनचाहा रिटर्न के लिए सबसे अच्छे और सबसे बुरे मामले के परिदृश्यों का मूल्यांकन करने के बाद उनमें इन्वेस्ट करते हैं। इसी तरह, फिक्स्ड डिपोजिट, डेब्ट म्यूच्यूअल फंड्स, रियल एस्टेट, और अन्य इन्वेस्टमेंट प्रोडक्ट्स में भी रिस्क होता है, लेकिन अलग-अलग प्रोडक्ट में रिस्क सीमा और रिटर्न क्षमता अलग-अलग होती है।

हालिया डेब्ट फंड गड़बड़ी के कारण कई इन्वेस्टर्स के मन में शक पैदा हो गया है। स्टेबल रिटर्न्स के लम्बे इतिहास के कारण, कई इन्वेस्टर्स भूल गए थे कि डेब्ट फंड्स में भी कुछ रिस्क होता है। यदि आपको किसी प्रोडक्ट में इन्वेस्ट करने से पहले उसकी रिस्क सीमा और रिटर्न सम्भावना के बारे में पता है तो आप एक बेहतर इन्वेस्टमेंट डिसिशन ले सकते हैं। लेकिन इससे यह सच नहीं बदलता है कि डेब्ट फंड्स अभी भी, फाइनेंसियल लक्ष्यों को पूरा करने में मदद कर सकने वाले बेहतरीन इन्वेस्टमेंट टूल्स हैं। आइए देखते हैं कि डेब्ट डेब्ट फंड्स के बारे में अधिक जाने फंड्स कैसे उपयोगी इन्वेस्टमेंट्स हैं और उनमें इन्वेस्ट करने से पहले आपको किन-किन बातों का ध्यान रखना चाहिए।

टैक्स बेनिफिट्स
डेब्ट फंड्स, लॉन्ग-टर्म कैपिटल गेन्स पर टैक्स का हिसाब लगाते समय इंडेक्सेशन बेनिफिट के माध्यम से महंगाई रिस्क से आपकी रक्षा करता है। तीन साल से ज्यादा समय के लिए किए गए डेब्ट फंड इन्वेस्टमेंट को लॉन्ग-टर्म माना जाता है, और उनके कैपिटल गेन्स को लॉन्ग-टर्म कैपिटल गेन्स (LTCG) कहा जाता है। तीन साल से कम के इन्वेस्टमेंट कैपिटल गेन्स को शॉर्ट-टर्म कैपिटल गेन्स (STCG) कहा जाता है। डेब्ट फंड्स पर इंडेक्सेशन बेनिफिट के साथ 20% LTCG टैक्स लगता है, जबकि STCG टैक्स, इनकम टैक्स स्लैब रेट के अनुसार लगता है। इसलिए, हायर टैक्स ब्रैकेट वाले इन्वेस्टर्स अपने LTCG बेनिफिट के लिए डेब्ट फंड्स में इन्वेस्ट करके ज्यादा टैक्स बचा सकते हैं।

इस पर कोई TDS नहीं लगता
डेब्ट फंड इन्वेस्टर्स की रिस्क उठाने की चाहत अक्सर कम होती है लेकिन वे बैंक FD से बेहतर रिटर्न चाहते हैं। इसलिए, FD और डेब्ट फंड्स की तुलना करने पर सब साफ़ हो जाएगा। एक फाइनेंसियल इयर में FD पर 40,000 से ज्यादा इंटरेस्ट मिलने पर, बैंक उस पर 10% TDS काट लेता है। लेकिन यदि आपकी टैक्स देनदारी कम है, तो आप TDS अमाउंट का रिफंड क्लेम कर सकते हैं। दूसरी तरफ, डेब्ट फंड्स पर TDS नहीं लगता है। डेब्ट फंड्स को रेडीम करने पर इन्वेस्टर की टैक्स देनदारी बढ़ जाती है। FD की तुलना में इंटरेस्ट रेट ट्रेंड डाउनवार्ड होने पर डेब्ट फंड्स ज्यादा रिटर्न देते हैं लेकिन इंटरेस्ट रेट ट्रेंड अपवार्ड होने पर FD ज्यादा रिटर्न देता है। लेकिन, प्रीमैच्योर FD विथड्रॉल पर पेनाल्टी लगती है जबकि इंटरेस्ट रेट गिरने पर FD में भी इन्वेस्टमेंट रिस्क होता है।

डेब्ट फंड में इन्वेस्ट करते समय ध्यान में रखने लायक बातें
डेब्ट फंड में इन्वेस्ट करने से पहले, आपको उससे जुड़े विभिन्न रिस्क के बारे में पता होना चाहिए। मार्केट में तरह-तरह के डेब्ट फंड्स हैं और हर प्रोडक्ट में अलग-अलग रिस्क होता है। तो, डेब्ट फंड का चुनाव करते समय किन-किन रिस्क को ध्यान में रखना चाहिए? डेब्ट फंड में इन्वेस्ट करते समय क्रेडिट रिस्क, लिक्विडिटी रिस्क, इंटरेस्ट रेट रिस्क, और ड्यूरेशन रिस्क जैसे रिस्क पर नजर रखनी चाहिए। इन्वेस्टर्स द्वारा अचानक रेडीम करने की होड़ के कारण क्रेडिट रिस्क पैदा होने और संदिग्ध AMC द्वारा समय पर अपनी होल्डिंग्स न बेच पाने के कारण हालिया डेब्ट फंड गड़बड़ी पैदा हुई है। इन्वेस्टर्स को इंटरेस्ट रेट रिस्क के बारे में भी पता होना चाहिए। इंटरेस्ट रेट बढ़ने पर, डेब्ट फंड्स का NAV गिरता है, जिससे इन्वेस्टर्स का रिटर्न भी गिर जाता है। लम्बे-समय तक होल्ड किए जाने वाले एसेट्स में इन्वेस्ट करने वाले डेब्ट फंड्स में अधिक इंटरेस्ट रेट वोलेटिलिटी रिस्क होता है।

मौजूदा परिस्थिति में, कम-समय के लिए सिक्योरिटीज को होल्ड करने वाले डेब्ट फंड में इन्वेस्ट करना ज्यादा सुरक्षित होता है। ऐसे फंड्स अधिकतर G-सेक या AAA-रेटेड सिक्योरिटीज में इन्वेस्ट करते हैं। बहुत कम-रिस्क उठाने वाले इन्वेस्टर्स, भारत बॉन्ड ETF में भी इन्वेस्ट कर सकते हैं। अब अधिकांश इन्वेस्टर्स को पता चल चुका है कि डेब्ट फंड्स रिस्क-फ्री नहीं होते। उन्हें यह भी समझना चाहिए कि डेब्ट फंड्स में, रिस्क को इक्विटी फंड्स की तुलना में अधिक कुशलतापूर्वक मैनेज किया जा सकता है। अपने फाइनेंसियल लक्ष्यों और पैसे की जरूरत के अनुसार डेब्ट फंड्स का सही चुनाव और डेब्ट फंड के पोर्टफोलियो एलोकेशन की नियमित निगरानी भी जरूरी है।

इस लेख के लेखक, BankBazaar.com के CEO आदिल शेट्टी हैं)
(डिस्क्लेमर: यह जानकारी एक्सपर्ट की रिपोर्ट के आधार पर दी जा रही है। बाजार जोखिमों के अधीन होते हैं, इसलिए निवेश के पहले अपने स्तर पर सलाह लें।) (ये लेख सिर्फ जानकारी के उद्देश्य से लिखा गया है। इसको निवेश से जुड़ी, वित्तीय या दूसरी सलाह न माना जाए)​

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