फंडामेंटल एनालिसिस

व्यापारियों को मिले वित्तीय मदद

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राष्ट्रीय जांच एजंसी यानी एनआइए ने कुछ मामलों की जांच में पाया कि व्यापारी नियंत्रण रेखा के पार से होने वाले कारोबार का फायदा उठा कर अवैध हथियार, मादक पदार्थ, नकली नोट आदि भेजने में मशगूल हैं। इसके मद्देनजर भारत सरकार ने नियंत्रण रेखा के पार से होने वाले कारोबार को बंद करने का फैसला किया है।

व्यापारियों को मिले वित्तीय मदद

सूत्रों का दावा, अशनीर ने आईसीसी टी20 वर्ल्ड कप 2021 के पास करोड़ों में बेचे

सूत्रों का दावा, अशनीर ने आईसीसी टी20 वर्ल्ड कप 2021 के पास करोड़ों में बेचे

नई दिल्ली, 16 मार्च (आईएएनएस)। चल रहे अशनीर ग्रोवर-भारतपे मामले में एक और आरोप लगाया गया। कई स्रोतों ने बुधवार को पुष्टि की है कि ग्रोवर ने कथित तौर पर पिछले साल आईसीसी टी20 विश्व कप 2021 के दौरान हजारों मुफ्त पास बेचे और उनमें से अधिकांश की बिक्री से व्यापारियों को मिले वित्तीय मदद करोड़ों रुपये कमाए।

भारतपे टूर्नामेंट का ग्लोबल पार्टनर था।

घटनाक्रम से जुड़े सूत्रों ने आईएएनएस को बताया कि ग्रोवर ने कथित तौर पर प्रत्येक पास को कम से कम 750 दिरहम (लगभग 15,000 रुपये) में बेचा और इस प्रक्रिया में कई करोड़ व्यापारियों को मिले वित्तीय मदद रुपये कमाए, जो कथित तौर पर दुबई के एक खाते में जमा किए गए थे।

सूत्रों के अनुसार, आम तौर पर एक ग्लोबल पार्टनर को एक मैच के लिए लगभग 700 मुफ्त पास मिलते हैं और फिनटेक प्लेटफॉर्म के पास वितरित करने के लिए हजारों पास होते हैं, जिनमें से अधिकांश कथित तौर पर बेचे जाते हैं।

भारतपे के कुछ कर्मचारियों ने आईएएनएस को बताया कि व्यापारियों को मिले वित्तीय मदद उन्हें कॉमन स्टैंड के लिए पास दिए गए थे, लेकिन वीआईपी के लिए नहीं।

आईसीसी टी20 विश्व कप 2021 की मेजबानी यूएई और ओमान ने चार स्थानों शारजाह, दुबई, अबू धाबी और मस्कट में 17 अक्टूबर से की थी। टूर्नामेंट का फाइनल 14 नवंबर को दुबई में खेला गया था। वहीं, इस टूर्नामेंट में सोलह टीमों ने भाग लिया था।

पिछले साल जून में, अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट परिषद (आईसीसी) ने 2021 से 2023 तक भारतपे के साथ एक रणनीतिक साझेदारी की।

समझौते ने पूरे कार्यकाल के दौरान सभी आईसीसी आयोजनों में भारतपे की भागीदारी और एकीकरण सुनिश्चित किया।

ग्रोवर ने तब कहा था कि यह एसोसिएशन हमें अपने मौजूदा व्यापारियों के साथ एक मजबूत संबंध बनाने में सक्षम बनाएगी, साथ ही साथ भारत के लाखों नए छोटे व्यापारियों के साथ बेहतर ढंग से जुड़ने में मदद करेगी।

फिनटेक प्लेटफॉर्म ने हाल ही में ग्रोवर की पत्नी माधुरी जैन ग्रोवर को उनके कार्यकाल के दौरान करोड़ों रुपये की वित्तीय अनियमितताओं के आरोप में बर्खास्त कर दिया था।

इसके बाद, ग्रोवर ने यह कहते हुए इस्तीफा दे दिया था कि उन्हें एक कंपनी छोड़ने के लिए मजबूर किया जा रहा है, जिसका मैं एक संस्थापक हूं।

भारतपे ने एक बयान में कहा, उनके (अश्नीर ग्रोवर) और उनके परिवार के खिलाफ कानूनी कार्रवाई करने के सभी अधिकार सुरक्षित हैं।

इस महीने की शुरुआत में, फिनटेक प्लेटफॉर्म ने खुलासा किया कि ग्रोवर, उनकी पत्नी माधुरी जैन और उनके रिश्तेदार कंपनी के फंड के बड़े पैमाने पर हेराफेरी में लगे हुए थे और अपनी भव्य जीवन शैली के लिए कंपनी के पैसे का बहुत दुरुपयोग किया है।

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भारत के 14 बैंकों का राष्ट्रीयकरण कब और क्यों हुआ था?

इंदिरा गाँधी सरकार ने 19 जुलाई, 1969 को एक आर्डिनेंस जारी करके देश के 14 बड़े निजी बैंकों का राष्ट्रीयकरण कर दिया था. जिस आर्डिनेंस के ज़रिये ऐसा किया गया वह ‘बैंकिंग कम्पनीज आर्डिनेंस’ कहलाया था. इस राष्ट्रीयकरण के पीछे सबसे बड़ा कारण बैंकों को केवल कुछ अमीरों के चंगुल से बाहर निकालना था ताकि आम आदमी को भी बैंकिंग क्षेत्र से जोड़ा जाए.

Nationalisation of Banks-1969

सन 1947 में जब देश आजाद हुआ तो देश के आर्थिक हालात ठीक नहीं थे. देश के ऊपर अग्रेजों द्वारा की गयी आर्थिक लूट के निशान साफ देखे जा सकते थे. देश में कुछ लोगों के पास बहुत अधिक धन था और एक बड़ा तबका गरीबी में जकड़ा हुआ था.

ताशकंद समझौते के दौरान लाल बहादुर शास्त्री जी की मौत हो गयी थी और 1967 में जब इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री बनीं तो पार्टी पर उनकी पकड़ मज़बूत नहीं थी. लोग उन्हें कांग्रेस सिंडिकेट की ‘गूंगी गुड़िया’ कहते थे. ऐसे समय में इंदिरा गाँधी को अपनी छवि बदलनी थी और कड़े फैसले लेने थे.

देश के आर्थिक हालात:

देश की आर्थिक शक्ति का संकेन्द्रण केवल कुछ हाथों में हो रहा था. कमर्शियल बैंक सामाजिक उत्थान की प्रक्रिया में सहायक नहीं हो रहे थे. इस समय देश के 14 बड़े बैंकों के पास देश की लगभग 80% पूंजी थी. इन बैंकों पर केवल कुछ धनी घरानों का ही कब्ज़ा था और आम आदमी को बैंकों से किसी तरह की कोई मदद नहीं मिलती थी. बैंकों में जमा पैसा उन्हीं सेक्टरों में निवेश किया जा रहा था, जहां लाभ की ज्यादा संभावनाएं थीं.

वर्ष 1967 में इंदिरा ने कांग्रेस पार्टी में ‘दस सूत्रीय कार्यक्रम’पेश किया गया. इसके मुख्य बिंदु बैंकों पर सरकार का नियंत्रण करना, 400 पूर्व राजे-महाराजों को मिलने वाले वित्तीय लाभ बंद करना, न्यूनतम मज़दूरी का निर्धारण करना और आधारभूत संरचना के विकास, कृषि, लघु उद्योग और निर्यात में निवेश बढ़ाना इसके मुख्य बिंदु थे.

इंदिरा सरकार ने 19 जुलाई,1969 को एक आर्डिनेंस जारी करके देश के 14 बड़े निजी बैंकों का राष्ट्रीयकरण कर दिया. जिस आर्डिनेंस के ज़रिये ऐसा किया गया वह ‘बैंकिंग कम्पनीज आर्डिनेंस’ कहलाया. बाद में इसी नाम से विधेयक भी पारित हुआ और कानून बन गया.

nationalised banks 1969

बताते व्यापारियों को मिले वित्तीय मदद चलें कि इस राष्ट्रीयकरण से पहले देश में केवल स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया ही सरकारी बैंक था जिसका राष्ट्रीयकरण 1955 में किया गया था.

बैंकों का राष्ट्रीयकरण करने का कारण:

राष्ट्रीयकरण की मुख्य वजह बड़े व्यवसायिक बैंकों द्वारा अपनायी जाने वाली “क्लास व्यापारियों को मिले वित्तीय मदद बैंकिंग” नीति थीं. बैंक केवल धनपतियों को ही ऋण व अन्य बैंकिंग सुविधा उपलब्ध करवाते थे. राष्ट्रीयकरण के पश्चात क्लास बैंकिंग; “मास बैंकिंग”मे बदल गयी. ग्रामीण क्षेत्रों में शाखाओं का अभूतपूर्व विस्तार हुआ.

कुछ अन्य कारण इस प्रकार हैं;

1. बैंकों से केवल कुछ अमीर घरानों का प्रभुत्व हटाना

2. कृषि, लघु व मध्यम उधोगों, छोटे व्यापारियों को सरल शर्तों पर वित्तीय सुविधा देने व आम जन को बैंकिंग सुविधाएं उपलब्ध कराना

3. बैंक प्रबंधन को पेशेवर बनाना

4. देश में आर्थिक शक्ति का संकेन्द्रण रोकने के लिए उद्यमियों के नए वर्गों को प्रोत्साहन देना

बैंकों के राष्ट्रीयकरण के परिणाम

1. राष्ट्रीयकरण का एक और फायदा यह हुआ कि बैंकों के पास काफी मात्रा में पैसा इकट्टा हुआ और आगे विभिन्न जरूरी क्षेत्रों में बांटा गया जिनमें प्राथमिक सेक्टर, जिसमें छोटे उद्योग, कृषि और छोटे ट्रांसपोर्ट ऑपरेटर्स शामिल थे.

2. सरकार ने राष्ट्रीय बैंकों को दिशा निर्देश देकर उनके लोन पोर्टफ़ोलियो में 40% कृषि लोन को जरूरी बनाया इसके अलावा प्राथमिकता प्राप्त अन्य क्षेत्रों में भी लोन बांटा गया जिससे बड़ी मात्रा में रोजगार पैदा हुआ.

3. किसान छोटे कारोबारी और निर्यात के संसाधन बढ़े और उन्हें उचित वित्तीय सेवा मिली.

3. राष्ट्रीयकरण के बाद बैंकों की शाखाओं में ज़बरदस्त बढ़ोतरी हुई. बैंकों ने अपना बिज़नेस शहर से आगे बढ़ाकर बैंक गांव-देहात की तरफ कर दिया. आंकड़ों के मुताबिक़ जुलाई 1969 को देश में बैंकों की सिर्फ 8322 शाखाएं थीं और 1994 के आते-आते यह आंकड़ा 60 हज़ार को पार गया था.

प्रथम चरण के राष्ट्रीयकरण में मिले उत्साहजनक के कारण सरकार ने 1980 में बैंकों के राष्ट्रीयकरण का दूसरा दौर शुरू किया जिसमें और 6 और निजी बैंकों को सरकारी कब्ज़े में लिया गया था.

सारांशतः यह कहना ठीक होगा कि इंदिरा गाँधी की सरकार के द्वारा 1969 में 14 बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया जाना देशहित के लिए उठाया गया बहुत अच्छा कदम था. बैंकों के राष्ट्रीयकरण से देश का चहुमुंखी विकास संभव हुआ था.

संपादकीयः प्रतिबंध का रास्ता

पाकिस्तान के साथ रिश्ते मधुर बनाने के मकसद से भारत ने जो भी सहूलियत भरे कदम उठाए थे, पाकिस्तान उनका बेजा इस्तेमाल करता देखा गया है। नियंत्रण रेखा के पार से चलने वाले कारोबार में यही नजर आया है।

संपादकीयः प्रतिबंध का रास्ता

राष्ट्रीय जांच एजंसी यानी एनआइए ने कुछ मामलों की जांच में पाया कि व्यापारी नियंत्रण रेखा के पार से होने वाले कारोबार का फायदा उठा कर अवैध हथियार, मादक पदार्थ, नकली नोट आदि भेजने में मशगूल हैं। इसके मद्देनजर भारत सरकार ने व्यापारियों को मिले वित्तीय मदद नियंत्रण रेखा के पार से होने वाले कारोबार को बंद करने का फैसला किया है।

पाकिस्तान के साथ रिश्ते मधुर बनाने के मकसद से भारत ने जो भी सहूलियत भरे कदम उठाए थे, पाकिस्तान उनका बेजा इस्तेमाल करता देखा गया है। नियंत्रण रेखा के पार से चलने वाले कारोबार में यही नजर आया है। राष्ट्रीय जांच एजंसी यानी एनआइए ने कुछ मामलों की जांच में पाया कि व्यापारी नियंत्रण रेखा के पार से होने वाले कारोबार का फायदा उठा कर अवैध हथियार, मादक पदार्थ, नकली नोट आदि भेजने में मशगूल हैं। इसके मद्देनजर भारत सरकार ने नियंत्रण रेखा के पार से होने वाले कारोबार को बंद करने का फैसला किया है। यह कारोबार वस्तु विनिमय प्रणाली पर आधारित था। यानी इधर से जो वस्तुएं उधर भेजी जाती थीं, उनके बदले उतनी ही कीमत की दूसरी वस्तुएं इधर आती थीं। यह सुविधा इसलिए उपलब्ध कराई गई थी कि कश्मीर वाले इलाकों के उत्पादकों, खासकर फल और मेवा उत्पादकों को सुविधा हो सके। पाकिस्तान में पैदा होने वाली बहुत सारी चीजों को इधर बाजार मिल सके। इसके पीछे एक मकसद यह भी था कि इस तरह दोनों तरफ के आम लोगों का आापस में मिलना-जुलना बना रहेगा और फिर दोनों देशों के बीच रिश्तों में कड़वाहट कुछ कम होगी।

यह कारोबार मुख्य रूप से जम्मू-कश्मीर में सलमाबाद और चक्कन दा बाग के रास्ते होता था। दोनों रास्तों को बंद कर दिया गया है। हालांकि नियंत्रण रेखा के पार से होने वाले कारोबार पर कड़ी नजर रखी जाती है, कड़ाई से जांच होती है कि कारोबारी कोई अनुचित सामान सीमा पार न पहुंचा सकें। पर भारी मात्रा में वस्तुओं के विनिमय के बीच आतंकी संगठनों से सांठगांठ रखने वाले कारोबारी कोई न कोई गली निकाल कर अनुचित वस्तुएं सीमा पार पहुंचा ही देते हैं। छिपी बात नहीं है कि पाकिस्तान में व्यापारियों को मिले वित्तीय मदद नकली भारतीय नोटों का धंधा बड़े पैमाने पर फल-फूल रहा है। इसी तरह तमाम कड़ी निगरानी के बावजूद चरमपंथियों के पास व्यापारियों को मिले वित्तीय मदद हथियारों और गोला-बारूद की पहुंच हो जाती है। नोटबंदी के बाद माना गया था कि आतंकी संगठनों की कमर टूट जाएगी, मगर नकली नोटों के कारोबार के जरिए वे अपनी वित्तीय ताकत बचाए रखने में कामयाब रहे। नोटबंदी के ठीक बाद जो व्यापारियों को मिले वित्तीय मदद आतंकी पकड़े गए, उनके पास से नकली भारतीय नोट भी बरामद हुए थे। इन सबको देखते हुए गहन जांच के बाद एनआइए ने पाया कि कुछ कश्मीरी नागरिक चोरी-छिपे पाकिस्तान चले गए।

वहां वे चरमपंथी संगठनों से मिले और फिर फर्जी कंपनियां खोल कर नियंत्रण रेखा के पार से होने वाले कारोबार में मुब्तिला हो गए। वही इस तरह की अवैध गतिविधियां संचालित करते हैं। व्यापारियों को मिले वित्तीय मदद वैसे भी पुलवामा हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान को तरजीही राष्ट्र का दर्जा समाप्त कर दिया है। ऐसे में बिना कर चुकाए वस्तुओं की खरीद-बिक्री का सिलसिला बनाए रखने का कोई मतलब नहीं था। इस कारोबार पर पाबंदी लगने से भारतीय कारोबारियों को कोई खास नुकसान नहीं उठाना पड़ेगा। यहां फलों, सूखे मेवे आदि के लिए विशाल बाजार है। दिल्ली के रास्ते पूरी दुनिया में इनकी आपूर्ति के रास्ते खुले हुए हैं। पर परेशानी पाकिस्तानी कारोबारियों को उठानी पड़ेगी। नियंत्रण रेखा के रास्ते कारोबार की छूट होने से वहां के उत्पाद को भारत में एक सहज बड़ा बाजार उपलब्ध था। वह रुक जाने से पाकिस्तान सरकार पर एक अलग तरह का दबाव बनेगा। जाहिर है, इससे चरमपंथी संगठनों की कमर भी टूटेगी, क्योंकि उनके साजो-सामान और वित्तीय मदद का रास्ता भी इससे बंद हो गया है।

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अल्फा ने फैंसी बाजार के व्यापारियों को धमकाया

एक बयान में अल्फा आई ने स्थानीय समाचार पत्रों में छपी खबरों के हवाले से फैंसी बाजार के व्यापारियों पर नाराजगी जताई है।

अल्फा ने फैंसी बाजार के व्यापारियों को धमकाया

स्थानीय किसानों द्वारा उत्पादित आलू खरीदने से कथित रूप से इनकार किए जाने पर अल्फा आई ने फैंसी बाजार के व्यापारियों को धमकाते हुए स्थानीय किसानों के उत्पादित सामग्रियों को प्राथमिकता देने को कहा है।

एक बयान में अल्फा आई ने स्थानीय समाचार पत्रों में छपी खबरों के हवाले से फैंसी बाजार के व्यापारियों पर नाराजगी जताई है। बयान में संगठन ने कहा है कि फैंसी बाजार के व्यापारियों द्वारा स्थानीय किसानों द्वारा उत्पादित आलू न खरीदना उद्देश्य से प्रेरित है।

अल्फा आई ने कहा कि इन व्यवसायियों ने असम को सिर्फ व्यावसायिक साजिश के तहत लूट खसोट कर बर्बाद करने की कोशिश न कर सभी श्रेणी के लोगों के सुख दुख, आशा आकांक्षाओं में समाकार सामाजिक जिम्मेदारियों को निभाने में अग्रसर होना चाहिए।

एक असमिया दैनिक में छपी रिपोर्ट के अनुसार स्थानीय किसानों द्वारा उत्पादित 17 हजार क्विंटल आलू फैंसी बाजर के व्यापारियों द्वारा खरीदने से इनकार कर दिया गया था।

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